फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को विधिपूर्वक भगवान पशुपति की मृण्मयी मूर्ति बनाकर विविध उपचारों से उनकी पूजा करें। शतरुद्री के मंत्रों से पृथक-पृथक पंचामृत एवं जल द्वारा स्नान कराकर श्वेत चंदन अर्पित करें; फिर अक्षत, सफेद फूल, विल्वपत्र, धतूरे के फूल, अनेक प्रकार के फल और भली-भाँति पूजा करके विधिवत आरती करें। तदनन्तर क्षमा-प्रार्थना करके प्रणामपूर्वक उन्हें कैलास के लिये विसर्जन करें। जो स्त्री अथवा पुरुष इस प्रकार भगवान शिवकी पूजा करते हैं, वे इस लोक में श्रेष्ठ भोगों का उपभोग करके अंत में भगवान शिव के स्वरूप को प्राप्त करते हैं।
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